चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद, आगे कौन-कौन से नए कदम उठाए जाएंगे?

चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के पश्चात्, क्या-क्या नए कदम उठाएगा?

चंद्रयान-3 अब चंद्रमा के उस दक्षिणी ध्रुवीय सतह पर लंबाई-चौड़ाई की यात्रा के बाद उतरने वाला है, जहाँ पहले किसी भी देश को उपग्रह उतारने में सफलता नहीं मिली है।

14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से प्रक्षिप्त होने जा रहे चंद्रयान-3 ने अपनी 40 दिनों की यात्रा के बाद, 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय पास 70 डिग्री अक्षांश के पास उतरने की प्रयास करेगा।

ISRO ने चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान हुई तकनीकी त्रुटियों को ध्यान में रखकर चंद्रयान-3 को और भी उन्नत बनाया है। ISRO के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने मीडिया को बताया कि चंद्रयान-2 के लैंडर मॉड्यूल के डिज़ाइन को सफलतापूर्वक विश्लेषण करके, चंद्रयान-3 का नया डिज़ाइन तैयार किया गया है।

इसका मतलब है कि चंद्रयान-3 के लिए पहले से ही चंद्रयान-2 मिशन के डेटा का विश्लेषण करके उनमें संभावित त्रुटियों का पता लगाया गया है और इसके आधार पर लैंडर मॉड्यूल के डिज़ाइन में सुधार किए गए हैं, ताकि आने वाले प्रयास में सफलता मिल सके।

लैंडर मॉड्यूल ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र की लगभग 4 Km लंबाई और 2.4 Km चौड़ाई का एक उपयुक्त स्थान पहचाना है और अब प्रयास होगा कि वह इस सतह पर सुरक्षित रूप से उतर सके।

चंद्रयान-3 के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

चंद्रयान-3 एक भारतीय अंतरिक्ष मिशन है जिसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर को भेजकर वहाँ के वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना है। यह इसरो का महत्वपूर्ण प्रयास है जो चंद्रयान-2 मिशन के उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करता है।

  1. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना:

चंद्रयान-3 में एक लैंडर है जिसका उद्देश्य चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करना है। यह लैंडर अध्ययन करेगा कि चंद्रमा के इस क्षेत्र में कैसे विभिन्न विज्ञानिक प्रयोग और अनुसंधान किए जा सकते हैं।

  1. रेजोलिथ पर लैंडर को उतारना और घुमाना:

इस मिशन में एक रोवर भी शामिल है जो चंद्रमा की सतह पर जाकर रेजोलिथ नामक पत्थरी चट्टानों की शोध करेगा। यह रोवर चंद्रमा की सतह पर चलकर विभिन्न जगहों पर जांच करेगा और वैज्ञानिकों को विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने में मदद करेगा।

3.लैंडर और रोवर्स से चंद्रमा की सतह पर शोध कराना:

चंद्रयान-3 में लैंडर और रोवर द्वारा चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक अनुसंधान किया जाएगा। यह उपकरण सतह की संरचना, भौतिक गुणधर्म और विभिन्न तत्वों की उपस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करेंगे।

इस मिशन के अंतर्गत, चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रयान-2 मिशन के ऑर्बिटर के साथ संवाद स्थापित करेगा, जिससे डेटा और जानकारी का अद्यतन किया जा सकेगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान को वृद्धि देने में मदद करेगा।

प्रोपल्शन मॉड्यूल की विशेषता:

चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर की प्रोपल्शन (प्रणोदन) मॉड्यूल ने चंद्रमा की सतह तक उन्नति हासिल की है, जिसमें एक सौ किलोमीटर की ऊंचाई शामिल है।

17 अगस्त को, लैंडर ने इस मॉड्यूल से अलग होकर चंद्रमा पर विभिन्न कार्यों की शुरुआत की। इस मॉड्यूल का वजन 2145 किलोग्राम है और शुरुआत में इसमें 1696 किलोग्राम ईंधन था।

चंद्रयान-3 को एसएचएपीई (स्पेक्ट्रो पोलरोमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेटरी अर्थ) उपकरण से भी सुसज्जित किया गया है, जिसका मतलब है कि यह उपकरण चंद्रमा की परिक्रमा करेगा और दूरस्थ ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज करेगा। इसके माध्यम से, यह अन्य ग्रहों के स्पेक्ट्रोपोलिमेट्रिक संकेतों की जांच कर पृथ्वी की तरह जीवन धारित ग्रहों की खोज करेगा।

इसरो का अनुमान है कि यह तीन से छह महीने तक चंद्रमा की परिक्रमा करेगा। एसएचएपीई उपकरण प्रोपल्शन मॉड्यूल में लगे एस बैंक पॉन्डर के माध्यम से एकत्रित जानकारी को भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क तक पहुंचाएगा।

लैंडर मॉड्यूल की ख़ासियत

चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल में एक विशेषता है। यहाँ पर लैंडर और रोवर्स एक साथ मिलते हैं। जब ये दोनों चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब उतरते हैं, तब उनका जीवनकाल एक चंद्र दिवस होता है। इसका मतलब है कि इन्हें चंद्र पर एक दिन तक अनुसंधान किया जा सकता है।

चंद्रमा पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है।

चंद्रयान-3 के लैंडर की लंबाई दो मीटर है, चौड़ाई दो मीटर है, ऊंचाई एक मीटर 116 सेमी है, और वजन 1749 किलोग्राम है।

इस लैंडर का महत्वपूर्ण कार्य होगा चंद्रयान-3 के संचार का प्रबंधन करना, क्योंकि यह रोवर से आगंतुकों से संवाद स्थापित करेगा। इसके साथ ही, यह रोवर के साथ-साथ चंद्रयान-2 पर लॉन्च किए गए ऑर्बिटर के साथ भी संवाद स्थापित करेगा।

इसके अलावा, यह बेंगलुरु के पास बेलालू में स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क के साथ सीधा संवाद कर सकेगा। इस प्रकार, चंद्रयान-3 वन और मंगलयान जैसे अंतरिक्ष मिशन के दौरान भी नेटवर्क संवाद की भूमिका निभाएगा।”

चंद्रयान-3 के ख़ास उपकरण

इसरो ने लैंडर मॉड्यूल में महत्वपूर्ण पेलोड स्थापित किए हैं।

इनमें से एक है रेडियो एनाटॉमी ऑफ़ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर या संक्षेप में कहें तो रंभा।

यह डिवाइस चंद्रमा की सतह पर प्लाज्मा घनत्व की जांच करेगा। यानी यह वहां आयनों और इलेक्ट्रॉनों के स्तर और समय के साथ उनमें होने वाले बदलावों का अध्ययन करके जानकारी इकट्ठा करेगा।

लैंडर में स्थापित एक और महत्वपूर्ण उपकरण चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों का अध्ययन करेगा।

लैंडर में लगा हुआ एक और प्रमुख उपकरण है आईएलएसए यानी इंस्ट्रुमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी।

यह चंद्रयान-3 लैंडर के लैंडिंग स्थल पर होने वाली भूकंपीय गतिविधि की जांच करेगा। यह भविष्य में चंद्रमा पर मानवों के निवास और मौजूदगी के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है।

टेक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण प्रतिदिन पृथ्वी पर सैकड़ों भूकंप आते हैं। भूकंप की पहचान करने के लिए सिस्मोग्राफ़ी का उपयोग होता है। यही स्थिति चंद्रमा पर भी है। चंद्रमा पर आने वाले भूकंप भी चंद्रमा की सतह पर होते हैं।

अगर भविष्य में चंद्रमा पर मानव बस्तियाँ बसाई जाएँ, तो सबसे पहले भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन किया जाना चाहिए। इसलिए, यह उपकरण चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा और चंद्रमा की परत और आवरण की जांच करेगा।

इनके साथ ही, एलआरए नामक एक और पेलोड भी लैंडर में स्थापित किया गया है।

एलआरए लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर एक संक्षिप्त उपकरण है जो चंद्रमा की गतिशीलता की जांच करता है।

अगर लैंडर सूरज की रोशनी की दिशा के अलावा किसी अन्य दिशा में लैंड करता है, तो कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि लैंडर के तीनों दिशाओं में सोलर पैनल लगे हैं।

चौथी दिशा से रोवर सुरक्षित रूप से बाहर निकल सकता है, इसके लिए एक रैंप लगाया गया है।

रोवर मॉड्यूल का काम :

चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 में मुख्य घटक रोवर है। चंद्रमा पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर उसमें से निकलेगा और चंद्रमा की सतह पर घूमकर शोध करेगा, जानकारी जुटाएगा।

चंद्रयान-3 के रोवर का वजन केवल 26 किलोग्राम है। इसमें छह पहिए लगे हुए हैं। इसमें बिजली उत्पादन के लिए सोलर पैनल के साथ बैटरी भी शामिल है।

91.7 सेमी लंबा, 75 सेमी चौड़ा और 39.7 सेमी ऊंचा, रोवर अपने छह पहियों की मदद से चंद्र सतह पर चलेगा। छोटे आकार और अन्य चुनौतियों के चलते रोवर केवल लैंडर के साथ संचार कर सकता है।

इसका मतलब है कि अगर यह एकत्र की गई जानकारी लैंडर को भेजता है, तो लैंडर इसे भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा।

रोवर में दो प्रमुख उपकरण हैं।

उनमें से पहला एलआईबीएस यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप ही मुख्य है। यह एक अत्याधुनिक विधि है जिसका उपयोग किसी स्थान पर तत्वों और उनके गुणों की पहचान करने के लिए किया जाता है।

यह उपकरण चंद्रमा की सतह पर बहुत तीव्र लेजर फायर करेगा, इसके चलते सतह की मिट्टी तुरंत पिघल कर प्रकाश उत्सर्जित करेगी। इसके वेबलेंथ का विश्लेषण करके एलआईबीएस सतह पर मौजूद रासायनिक तत्वों और सामग्रियों की पहचान करेगा।

रोवर पर स्थापित यह एलआईबीएस उपकरण चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन जैसे तत्वों की उपस्थिति का पता लगाएगा।

चंद्रमा पर जारी अंतरिक्ष अभियानों का यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। एलआईबीएस चंद्रमा की सतह पर 14 दिन बिताएगा और विभिन्न स्थानों पर विश्लेषण किए गए डेटा को लैंडर तक पहुंचाएगा। लैंडर उस जानकारी को भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा। इस डेटा का विश्लेषण करके इसरो चंद्रमा की सतह पर तत्वों की पहचान करेगा।

रोवर पर ल गा एक अन्य उपकरण एपीएक्सएस यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है। यह चंद्रमा की सतह पर मिट्टी और चट्टानों में प्रचुर मात्रा में रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा।

यह चंद्रमा की सतह और उसकी मिट्टी के बारे में हमारी समझ को बढ़ाकर भविष्य के प्रयोगों को और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ाने का रास्ता तैयार करेगा।

ऐसा ही एक उपकरण नासा के मंगल ग्रह पर भेजे गए क्यूरियोसिटी जैसे रोवर्स में भी लगाया गया था।

14 दिनों तक करेगा प्रयोग :

14 दिनों तक एक प्रयोग किया जाएगा। चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर, और प्रोपल्शन मॉड्यूल को सभी को चलाने के लिए और पृथ्वी पर गहरे अंतरिक्ष नेटवर्क तक जानकारी पहुंचाने के लिए बिजली की आवश्यकता होगी।

इस बिजली को सौर पैनलों से प्राप्त किया जाएगा। इसलिए इसरो को चुनौती है कि वे लैंडर मॉड्यूल को सबसे अच्छे तरीके से सूर्योदय के समय चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने का प्रयास कर रहे हैं।

पृथ्वी के 14 दिनों के समकालीन चंद्रमा पर भी 14 दिन का दिन होता है, जिसके बाद 14 दिनों तक रात होती है।

इस परिस्थिति में स्पष्ट है कि चंद्रमा की सतह पर दिन में लैंडर और रोवर को सौर ऊर्जा प्राप्त होगी, जिससे पृथ्वी के 14 दिनों के समय के समान समय तक उपकरणों का उपयोग किया जा सकेगा।

चंद्रमा की सतह पर दिन में तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि रात में यह तापमान शून्य से 120 डिग्री नीचे गिर जाता है।

चंद्रयान-3 का प्रयास होगा कि वह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरे, जहाँ रात के समय तापमान शून्य से 230 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है।

इसका मतलब है कि 14 दिनों के बाद लैंडर और रोवर को काफी ठंडे तापमान में रहना होगा, और उस स्थिति में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और बैटरी का उपयोग करने में कठिनाइयाँ हो सकती हैं।

इसी कारण इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ ने स्पष्ट किया है कि लैंडर और रोवर का अधिवेशन 14 दिनों तक होगा।